*महाविद्रोही राहुल सांकृत्‍यायन लिखित ‘दिमागी गुलामी’ की पीडीएफ फाइल*

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*इतिहास के सुनहरे पन्‍ने*
*महाविद्रोही राहुल सांकृत्‍यायन लिखित ‘दिमागी गुलामी’ की पीडीएफ फाइल*
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*पुस्‍तक का संक्षिप्‍त परिचय*

*‘दिमागी गुलामी’ नाम की इस छोटी-सी पुस्तिका में राहुल ने अपनी मारक और विचारोत्तेजक शैली में देश के पिछड़े सामाजिक जीवन के कुछ पहलुओं पर विचार किया है। यह पुस्तिका कई मायनों में आज भी प्रासंगिक है। इसका पुनर्प्रकाशन अतीत की स्मृतियों से प्रेरणा लेने और अपनी गौरवशाली परम्परा से जुड़कर उसकी अधूरी राह पर आगे बढ़ने के प्रयास में मदद करेगा, यह हमारा विश्वास है।*

आज जब सर्वग्रासी संकट से ग्रस्त हमारा समाज गहरी निराशा, गतिरोध और जड़ता के अँधेरे गर्त में पड़ा हुआ है, जहाँ पुरातनपन्थी मूल्यों-मान्यताओं और रूढि़यों के कीड़े बिलबिला रहे हैं, तो राहुल का उग्र रूढि़भंजक, साहसिक और आवेगमय प्रयोगधर्मा व्यक्तित्व  प्रेरणा का ड्डोत बनकर सामने आता है। आज राहुल की वैज्ञानिक जीवनदृष्टि के अथक प्रचारक व्यक्तित्व से सीखने की ज़रूरत है, उनकी लोकोन्मुख तर्कपरकता से सीखने की ज़रूरत है, उनके जैसे सकर्मक इतिहास-बोध से लैस होने की ज़रूरत है और सिद्धान्त और व्यवहार में वैसी एकता व़फ़ायम करने की ज़रूरत है। आज जिस नये क्रान्तिकारी पुनर्जागरण और प्रबोधन की ज़रूरत है, उसकी तैयारी करते हुए राहुल जैसे इतिहास-पुरुष का व्यक्तित्व हमारे मानस को सर्वाधिक आन्दोलित करता है।

*राहुल सांकृत्यायन सच्चे अर्थों में जनता के लेखक थे। वह आज जैसे कथित प्रगतिशील लेखकों सरीखे नहीं थे जो जनता के जीवन और संघर्षों से अलग–थलग अपने–अपने नेह–नीड़ों में बैठे कागज पर रोशनाई फिराया करते हैं।* जनता के संघर्षों का मोर्चा हो या सामंतों–जमींदारों के शोषण–उत्पीड़न के खिलाफ किसानों की लड़ाई का मोर्चा, वह हमेशा अगली कतारों में रहे। अनेक बार जेल गये। यातनाएं झेलीं। जमींदारों के गुर्गों ने उनके ऊपर कातिलाना हमला भी किया, लेकिन आजादी, बराबरी और इंसानी स्वाभिमान के लिए न तो वह कभी संघर्ष से पीछे हटे और न ही उनकी कलम रुकी।

दुनिया की छब्बीस भाषाओं के जानकार राहुल सांकृत्यायन की अद्भुत मेधा का अनुमान इस बात से भी लगाया जा सकता है कि ज्ञान–विज्ञान की अनेक शाखाओं, साहित्य की अनेक विधाओं में उनको महारत हासिल थी। इतिहास, दर्शन, पुरातत्व, नृतत्वशास्त्र, साहित्य, भाषा–विज्ञान आदि विषयों पर उन्होंने अधिकारपूर्वक लेखनी चलायी। दिमागी गुलामी, तुम्हारी क्षय, भागो नहीं दुनिया को बदलो, दर्शन–दिग्दर्शन, मानव समाज, वैज्ञानिक भौतिकवाद, जय यौधेय, सिंह सेनापति, दिमागी गुलामी, साम्यवाद ही क्यों, बाईसवीं सदी आदि रचनाएं उनकी महान प्रतिभा का परिचय अपने आप करा देती हैं।

राहुल देश की शोषित–उत्पीड़ित जनता को हर प्रकार की गुलामी से आजाद कराने के लिए कलम को हथियार के रूप में इस्तेमाल करते थे। उनका मानना था कि “साहित्यकार जनता का जबर्दस्त साथी, साथ ही वह उसका अगुआ भी है। वह सिपाही भी है और सिपहसालार भी।”

राहुल सांकृत्यायन के लिए गति जीवन का दूसरा नाम था और गतिरोध मृत्यु एवं जड़ता का। इसीलिए बनी–बनायी लीकों पर चलना उन्हें कभी गवारा नहीं हुआ। वह नयी राहों के खोजी थे। लेकिन घुमक्कड़ी उनके लिए सिर्फ भूगोल की पहचान करना नहीं थी। वह सुदूर देशों की जनता के जीवन व उसकी संस्कृति से, उसकी जिजीविषा से जान–पहचान करने के लिए यात्राएं करते थे।

*समाज को पीछे की ओर धकेलने वाले हर प्रकार के विचार, रूढ़ियों, मूल्यों–मान्यताओं–परम्पराओं के खिलाफ उनका मन गहरी नफरत से भरा हुआ था। उनका समूचा जीवन व लेखन इनके खिलाफ विद्रोह का जीता–जागता प्रमाण है।*
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